अयोध्या से प्रथम परिचय-भाग 2

देखकर मैं निराश हो रहा था कि क्या रद्दी जैसी हालत थी अयोध्या की। बचपन से रामायण और अयोध्या की कहानियों को सुनता आया था।   जिस राम नाम का नाम लेकर करोड़ो भारतीय अपने दिन की शुरुआत करते हैं उस राम की जन्मभूमि पर उतरने के बाद साफ पानी भी बड़ी मशक़्क़त से नसीब हुआ। भाग्यवश बैग में पानी का बॉटल था।  पूरा स्टेशन जैसे अंधेरे में डूबा था। कहीं कहीं एक दो लाइट जल रही थी प्लैटफ़ार्म पर। थोड़ी देर बाद एक दो लोग दूसरी ट्रेन में चढ़े तो बैठने के लिए सीट नसीब हुआ। सुबह के 5 बजे मैंने मुँह हाथ धोकर बाहर निकल कर थोड़ा घूमने का मन बनाया। कुछ भूख जैसा भी महसूस कर रहा था। बड़ी उम्मीद लेकर स्टेशन से बाहर निकला। ऐसा लग रहा था जैसे मैं वापिस गाँव आ गया हूँ। सच तो ये था कि मेरे घर के सबसे पास रोसेरा स्टेशन की व्यवस्था भी अयोध्या स्टेशन से अधिक सुंदर थी।

मैं स्टेशन से बाहर निकल बाज़ार की ओर जाने का प्रयास कर रहा था। लेकिन वहाँ का मंजर देख जैसे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ऐसा नही था कि मैं किसी उम्मीद या बड़ा मन बना कर अयोध्या आया था। बरबस ही स्टेशन पर उतर आया था, लेकिन निश्चित रूप से इस दृश्य कि कल्पना नही की थी मैंने। बाहर सड़क के दोनों ओर कुछ चाय नाश्ता का दुकान था। दुकानों की हालत चिल्ला चिल्ला कर अयोध्या की दुःख भरी कहानी कह रही थी। और बाज़ार भी कुछ खास नही था। 40- 50 मीटर आगे जाकर बाज़ार भी खत्म हो जा रहा था।

मैं बस घूमने का मन बना कर थोड़ी दूर आगे तक गया और टहल कर वापस मुड़ गया। सुबह की ताजी हवा में ठंड की लहरें थी। मौसम भी थोड़ा थोड़ा धुंधला सा था। दुकानों की लाइट्स अभी तक जल रही थी। स्टेशन के पास ही एक दुकान पर बैठ एक कप चाय पीया। रात भर जगने के कारण आँखें भारी हो रही थी। चाय ने थोड़ी मदद की। लेकिन थकान अभी भी था। मैं वापस स्टेशन पर आ गया। पूछताछ में जाकर बाराबंकी के लिए अगली ट्रेन के बारे में पता किया। थोड़ी थोड़ी देर में काफी सारी ट्रेन थीं। इसलिए जल्दीबाजी की कोई जरूरत नही थी। मैंने लगभग 7 बजे के बाद वाली ट्रेन पकड़ने के निश्चय किया।

टिकिट पहले से पास में था। इसलिए प्लेटफ़ार्म नंबर 2 पर आकर ट्रेन के इंतज़ार में टहलने लगा। लेकिन मन अशांत था। उस स्टेशन की हालत देखकर बार-बार मन में विचार आ रहा था, आखिर क्या कारण हो सकता है कि जिस अयोध्या में राम ने जन्म लिया, जिस अयोध्या का गौरवशाली वर्णन हर भारतीय को हर्षोल्लास से भर दे, उस अयोध्या में कदम रखने पर ये दुर्दशा दिखाई दे। भारत को आजादी मिले दशकों बीत चुके हैं और फिर भी किसी को सुध नही थी। राम-मंदिर की चर्चा संघ और बीजेपी के द्वारा चुनाव-काल में तो बहुत किया जाता था। लेकिन धरातल पर अयोध्या की दुर्दशा मेरी आँखों के सामने था। कई बार सुना था कि राम-लला टेंट में वर्षों से विराजमान हैं। आजादी के बाद कई सरकार आई उत्तरप्रदेश में, लेकिन कोर्ट कचहरी के चक्कर में न राम को टेंट ने छोड़ा और न अयोध्या को उसकी दुर्दशा ने। बहरहाल इसी तरह के बातों में खोये खोये कब ट्रेन आ गई, पता नही चला। मैं फिर अपने सफर की ओर निकल पड़ा और आज लगभग 7 साल बाद दोबारा उन यादों को जी रहा हूँ।

दो दिन बाद अयोध्या में वर्षों का स्वप्न साकार होने जा रहा है। निश्चित रूप से अयोध्या की भाग्य रेखा परिवर्तित हो चुकी है। और यह परिवर्तन एक तमाचा है उन लोगों के चेहरे पर जो ये मानते हैं कि भाग्य रेखा अमिट है। मनुष्य अपने पौरुष से ही अपने भाग्य का निर्माण करता है। और इस सत्य का प्रमाण है अयोध्या का जीर्णोद्धार। आज मन लालायित है अयोध्या को जाने को, रामलला के नए भव्य “टेंट” को देखने को। कहने वाले तरह तरह को बातें अभी भी बना रहे हैं लेकिन निःसन्देह जिन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद राम मंदिर बना है, वह अविश्वसनीय है। राजनीतिक दलों के लिए राम-मंदिर निर्माण मील का पत्थर है। बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में आज सातवें आसमान पर है। देशवासियों के लिए यह हर्ष, उल्लास और त्योहार का अवसर है। बस ध्यान इस बात का रखना है कि राम मंदिर देश की समस्याओं का हल नही है बल्कि देश को जड़-समस्याओं से निजात दिलाने वाली प्रक्रिया की ओर बढ़ा एक मजबूत कदम है। गर्व की बात यह है कि कुछ गिने चुने लोगों को छोड़ पूरा देश यह कदम एक साथ उठाने जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.