सुबह सुबह मवेशियों की देखभाल से शुरुआत होता है दिन का बिहार में, तभी तो आज के online technology के युग में भी बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, बस ये अलग है कि हमारा राज्य उन बड़े राज्यों की तरह नही है जो कृषि को दशकों पहले विदेशी निर्यात का एक अभिन्न उत्पाद बना चुके हैं। बिहार में आज भी छोटे किसान अपने सीमित उपज की मुनासिब कीमत के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कुछ एकाध वर्ष पहले समस्तीपुर जिला के एक किसान का एक विडियो वाइरल हुआ था जिसमे उसने गोभी की फसल पर अपना ही ट्रैक्टर दौड़ा दिया था क्योंकि बाज़ार में मिल रही कीमत लाभ तो दूर, लागत से भी कोसों दूर थी।
बहरहाल बिहार वर्तमान में परिवर्तन के एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां न सिर्फ राजनैतिक बल्कि आर्थिक, शैक्षिक और अन्य क्षेत्रों में लगातार उठापटक ने आम बिहारियों को यह सोचने पर मजबूर केआर दिया है कि आखिर वो करे तो क्या। लेकिन आज की युवा पीढ़ी अपनी असीम ऊर्जा के दम पर अपनी सभी कमजोरियों को धत्ता बताते हुए उसी परिवर्तन को अपने विकास को माध्यम बनाए हुए है। lockdown की मार झेल चुके युवा पीढ़ी दोबारा अपने भविष्य की बागडोर समय के हाथ में देने को तैयार नही हैं और इसी उधेड़बुन में कई युवा अपने सीमित संसाधन के साथ ही सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
इंटरनेट, facebook और watsapp के इस युग में भले ही आवश्यकता से अधिक जानकारी समस्या बनती दिख रही है लेकिन जो युवा अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए इंटरनेट या गूगल का दरवाजा खटखटा रहे हैं वो कतई निराश नही दिख रहें हैं। चाहे विरासत में मिला छोटा सा दुकान हो या कड़ी मेहनत से जमा किए छोटे से धन राशि का ही सहारा क्यों न हो, युवा अपने पूर्वजों की भाँति दिल्ली पंजाब या मुंबई इत्यादि जाकर जीवनयापन करने के बजाय अपने जुगाड़ और मेहनत के दम पर बिहार में ही अपने जीवनयापन का मार्ग तलाश कर रहे हैं
ऐसे बहुत से छोटे व्यवसाय है जैसे कि मुर्गीपालन, अंडा का व्यवसाय, छोटे-मोटे प्रिंटिंग यूनिट, केक का बिज़नस, ice-cream का बिज़नस इत्यादि छोटे छोटे लघु उद्योग गाँव देहात में अपने पाँव पसार रहे हैं। जिस तरह से युवा आगे बढ़कर अपने भविष्य की समस्याओं से जूझ रहे हैं, ये स्पष्ट है कि वे इस बात को समझ चुके हैं कि मेहनत मजदूरी कर सिर्फ पेट भरा जा सकता है , मंहगाई के इस दौर में अपने तथा आने वाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें कुछ ऐसा करने कि आवश्यकता है जिसमें वो न सिर्फ अपने परिवार का लालन पालन कर सके, बल्कि भविष्य की योजनाओं को ध्यान में रखते हुए कुछ जमा भी कर सके। मेहनत करने का हुनर इन युवाओं को अपने माता-पिता से विरासत में मिला है और साधन जुटाने का जुगाड़ बिहार की पहचान है, बस एक हिम्मत की कमी थी कि हाँ ये भी संभव है, और अब जबकि आज की युवा पीढी खुद आगे बढ़ कर, कई बार तो अपने माता-पिता के विरुद्ध जाकर, अपने व्यवसाय और अपने बेहतर भविष्य की नीव डाल रहे हैं, उनकी सराहना करना सर्वथा उचित है।
रोजगार और व्यवसाय से परे अगर शिक्षा की बात की जाए तो बिहार के सरकारी स्कूल की स्थिति आज भी ऐसी ही है कोई नाव बिना पतवार के नदी की तेज धारा में डूबता डूबता आगे बढ़ रहा है। शिक्षा एक ऐसा साधन है जो मनुष्य को आगे बढ्ने की प्रेरणा, हिम्मत और लक्ष्य देता है। वर्तमान में दिल्ली में माननीय अरविंद केजरीवाल की आप सरकार में जिस तरह से सरकारी स्कूल का कायापलट हुआ है, बिहार की मौजूदा सरकार के लिए यह एक सुनहला अवसर है। और जमीनी स्तर पर कई ऐसे बदलाव देखने को मिले हैं, जिसमें भविष्य की सोच स्पष्ट दिखाई दे रही है। पिछले कुछ वर्षों में नए शिक्षकों की बहाली, स्कूल परिसर में नए और उन्नत साधनों को लाना, शिक्षण प्रक्रिया में बदलाव लाने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाना इस बात का संकेत है की वो दिन दूर नही है जब बिहार के सरकारी स्कूल और स्कूल के छात्र छात्रा अपनी काबिलियत को वैश्विक पटल पर सिद्ध करेंगे।
Nice story