व्यस्त जीवन- किसानों की समस्या (life in BIhar)

प्रतिक्षण चलते रहना ही जीवन का वास्तविक स्वरूप है। एक दिन पहले पूरा जनपद जहाँ धूमधाम से छठ पूजा के उत्साह में डूबा था, अगले ही दिन फिर से लोग अपने दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण क्रियाकलापों में संलग्न हो गए हैं। ठंड का मौसम आ रहा है , किसानों के लिए आलू के फसल लगाने तथा धान की कटाई का समय है।

किसान के जीवन की सबसे बड़ी विडंबना ही यही है कि चाहे ठंड हो या गर्मी या बरसात, सुबह बिस्तर छोड़ने से लेकर रात में सोने के लिए के लिए बिस्तर पर जाने तक उन्हें एक पल का आराम बड़ी मुश्किल से नसीब होता है। ठंड के इस मौसम में अधिकांश किसानों ने आलू की रोपाई कर लिया है और अब धान की कटाई के लिए किसान कमर कस चुके हैं। कुछ किसान जिन्होंने पहले धान रोपा था, उन्होंने कटाई शुरू भी कर दिया है।

पिछले कुछ वर्षों में सरकारी संस्थानों के द्वारा धान की फसल के उचित दाम पर लेने के कारण किसानों में धान की फसल के प्रति अलग ही उत्साह देखने को मिला है। पैक्स और स्थानीय जन प्रतिनिधियो के सहयोग से अनेक छोटे बड़े किसानों को अपने फसल का उचित मूल्य प्राप्त हुआ है। सभी कागजी प्रक्रियाएँ online हो चुके हैं जिस कारण से एक अप्रत्याशित पारदर्शिता देखने को मिला है। किसान अधिक निश्चिंत नजर आ रहे हैं। हाँ कुछ किसान ऐसे भी हैं जो किसी न किसी कारणवश परेशान नजर आते हैं पर उनके परेशानी की वजह उनकी ही अज्ञानता और कागजी चीजों को न समझ पाने की क्षमता है जिसके कारण बिचौलिये इसका नाजायज़ फायदा उठाते हैं। बहरहाल किसान अभी पूरे सिद्दत के साथ धान की कटाई में लग गए हैं।

फसल की कटाई में बहुत सारे बड़े किसान अब मशीन का सहारा ले रहे हैं लेकिन छोटे किसान अभी भी मजदूरों के सहारे ही फसल की कटाई करवाते हैं। बढ़ती खाद और बीजों की कीमत के बीच मजदूर और अन्य खर्च छोटे किसानों के लिए बड़ा सिरदर्द बन जाता है। कुछ समय पहले लोग धान घर में रखते थे और आवश्यकता अनुसार उपयोग करते थे लेकिन बाजार में उपलब्ध बीजों की खराब गुणवत्ता के कारण किसान भी धान की खेती नगदी फसल के रूप में कर रहे हैं। और शायद इसीलिए उत्पाद बढ़ाने के लिए खाद पानी पर अधिक खर्च भी कर रहे हैं। वैसे तो कहने सुनने में अच्छा लगता है कि किसानों को उनके फसल की उचित कीमत समय से मिल जा रहा है लेकिन फसल के उपज में लगा समय, मेहनत और ख़र्च जोड़ने के बाद छोटे किसानों के लिए प्राप्त आमदनी किसी दिहाड़ी मजदूर की कमाई से भी कम मालूम पड़ती है। लेकिन किसानों के पास दूसरा उपाय ही क्या है, कुल मिला कर जमीन ही उनकी संपत्ति है और अब वे उस जमीन में खेती भी न करें तो क्या करें।

और शायद इसलिए इस महंगाई के युग में भी किसान छठ पूजा के अगले ही दिन से दिन रात एक कर फिर से अपनी खेती- बाड़ी के कार्यों में मशगूल हो गए हैं।

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