त्योहारों का सिलसिला चल रहा है, आसपास ब्याह-शादी का मौसम चल रहा है और इसी मौसम में हिन्दू मान्यता के सबसे बड़े नायकों में एक भगवान राम और देवी सीता के विवाह की तिथि को धूमधाम से मनाया जा रहा है। राम सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक भावना है जो हमारे आत्मा से जुड़ी हुई है। हमारे देश की संस्कृति में सीता-राम की जोड़ी प्रेम, समर्पण और त्याग की प्रतिमूर्ति मानी जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह हेतु स्वयंवर रचा जिसमें भारतवर्ष के कई राजाओं एवं राजकुमारों ने भाग लिया। अंत में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्रीरामचन्द्र ने धनुषभंग कर प्रतियोगिता जीत देवी सीता का वरण किया और मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्रीराम और देवी सीता का शुभ विवाह सम्पन्न हुआ।
वैसे तो परंपरा अनुसार विवाह के बाद प्रतिवर्ष वर्षगांठ मनाना चाहिए परंतु भगवान श्रीराम और देवी सीता के विवाह एवं और उनके पावन छवि के दर्शन की लालसा में उनके श्रद्धालुओं ने प्रतिवर्ष ही उनका विवाह करना प्रारम्भ कर दिया। और तबसे मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रतिवर्ष श्रीराम और सीता के विवाह को उत्सवरूप में मनाने का चलन हो गया।
इस पर्व पर अयोध्या और नेपाल में विशेष आयोजन किया जाता है। इसदिन प्रतिवर्ष सीता-राम के विवाह-उत्सव को पूरे बिहार में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। समय के साथ त्योहारों को मनाने का अंदाज़ बदलता जा रहा है। हृदय की भावनाओं में विज्ञान के विकास की झलक साफ साफ दिखलाई देती है।
बेगुसराय के खोदावंदपुर प्रखण्ड के बरियारपुर गाँव में मुख्य राजपथ से लगे हाई-स्कूल के प्रांगण और मुख्य राज्य-पथ के किनारे भव्य मेले का आयोजन किया गया है जहां तरह तरह के मिठाई, झूलों और खिलौने इत्यादि के दुकान चारों ओर सजे हैं। चमकदार बिजली के बल्ब और रंगीन प्रकाश से भरे माहौल में लोगों की बेकाबू भीड़ मेले में खिलौने, मिठाई और चाट-गोलगप्पे की दुकान के आगे-पीछे भरे होते हैं।
हमारे बिहार में त्योहार मनाया जाए और उसमें लोकगीत और ठेठी अंदाज़ में ईश्वर वंदना के दो-चार शब्द न हो तो फिर वो त्योहार ही कैसा। पूरे ज़ोर-शोर से समाज के बड़े-बुजुर्ग भी युवाओं के साथ कदम से कदम मिलाकर इस आयोजन में भाग लेते हैं।
मेला का माहौल हो और बच्चों का मनोरंजन न हो, भला ऐसा कभी हो सकता है। तरह तरह के झूले, खिलौने, मिठाई, चाट-गोलगप्पे, आइसक्रीम इत्यादि के दुकानों से मेला गुलजार रहता है। इस चमचमाती रौशनी और जगमगाते माहौल के बीच असली दमक छोटे-छोटे बच्चों के चेहरों पर दिखाई देती है। मोबाइल और विडियो गेम के बीच पलते-बढ़ते बच्चों के लिए मेले का भव्य रूप मानो उनमें नव-ऊर्जा का सृजन करता है।
बच्चे पूरे उत्साह और उत्सुकता से पूरे मेले में इधर उधर घूमने को व्याकुल रहती है। आस्था का मूलरूप शायद छोटे छोटे बच्चों के खिलखिलाते रूप में ही खोजना उचित है और शायद इसीलिए जिस त्योहार का आयोजन श्रीराम और देवी सीता के विवाहोत्सव को मनाने के लिए किया जाता है उसी उत्सव का मुख्य आकर्षण होता है मैदान में लगे बड़े बड़े झूले। विवाह पंचमी भले ही छठ पुजा या दशहरा की भांति दो-तीन दिन का त्योहार नहीं है लेकिन इस एक शाम को न सिर्फ छोटे बच्चे अपितु बड़े लोग भी जीवन-प्रयन्त अपनी यादों में ठीक वैसे ही सँजो कर रखते है जैसे हनुमान अपने हृदय में सीता-राम की दिव्य छवि को सँजो कर रखते हैं।